Saturday, November 20, 2010

चमत्‍कार : एक लघुकथा

                                                                                        फोटो: राजेश उत्‍साही
गली के मुहाने पर खाली प्‍लाट था। 

मोहल्‍ले के ज्‍यादातर लोगों के लिए कचरा डालने का एक ठिकाना । कब तक खाली रहता, बिक गया। जल्‍दी ही उस पर एक नया घर भी बन गया। कहते हैं कि आदत आसानी से नहीं जाती। कुछ लोग अब भी वहीं कचरा डाल रहे थे।

मकान मालिक परेशान-हैरान थे। सब उपाय करके देख लिए थे। वहां लिख दिया था अंग्रेजी में भी और स्‍थानीय भाषा में भी कि, ‘यहां कचरा डालना मना है।’ पर हर जगह की तरह वहां भी पढ़े-लिखे गंवारों की संख्‍या अधिक थी। लोग थे कि बाज ही नहीं आ रहे थे।

एक सुबह चमत्‍कार हो गया। कचरे की बजबजाती दुर्गंध की जगह चंदन की सुगंध ने ले ली। अब लोग घर का नहीं मन का कचरा डालने वहां आ रहे थे।

मकान मालिक ने रातों-रात अपने किसी आराध्‍य को पहरेदारी के लिए एक छोटी-सी मडि़या में वहां बिठा दिया था।
                                   0 राजेश उत्‍साही 


Friday, November 12, 2010

जन्‍मदिन और उमरगांठ

मुझ पर क्षुब्‍ध बारूदी धुएं की झार आती है
व उन पर प्‍यार आता है
कि जिनका तप्‍त मुख
संवला रहा है
धूम लहरों में
कि जो मानव भविष्‍यत्-युद्ध में रत हैं,
जगत् की स्‍याह सड़कों पर ।

कि मैं अपनी अधूरी दीर्घ कविता में
सभी प्रश्‍नोत्‍तरी की तुंग प्रतिमाएं
गिराकर तोड़ देता हूं हथौड़े से
कि वे सब प्रश्‍न कृत्रिम और
उत्‍तर और भी छलमय,

समस्‍या एक-
मेरे सभ्‍य नगरों और ग्रामों में
सभी मानव
सुखी,सुन्‍दर व शोषण-मुक्‍त
कब होंगे?

कि मैं अपनी अधूरी दीर्घ कविता में
उमग कर,
जन्‍म लेना चाहता फिर से
कि व्‍यक्तित्‍वान्‍तरित होकर
नए सिरे से समझना और जीना
चाहता हूं, सच।
0 मुक्तिबोध

*****
आज मेरा प्रकटीकरण दिवस यानी जन्‍मदिन है। वैसे मेरे दो जन्‍मदिन हैं। एक सरकारी और दूसरा अ-सरकारी या असर-कारी। एक मानना पड़ता है और दूसरे को मनाना। हां दोनों में ही 3 आता है। एक 30 अगस्‍त और दूसरा 13 नवम्‍बर। असल 13 नवम्‍बर है। शायद इसी तीन तेरह के चक्‍कर में घर वालों को स्‍कूल में नाम लिखाते समय 30 अगस्‍त याद रह गया। तो सरकार कहती है कि हम अगस्‍त में पैदा हुए और हम कहते हैं कि नवम्‍बर में। बहरहाल हकीकत यह है कि हम पैदा हुए हैं।  

Tuesday, November 2, 2010

संघर्ष के स्‍वर : इरोम शर्मिला की कविता

चित्र गूगल इमेज से साभार
(आयरन लेडी के नाम से विख्यात मणिपुर की इरोम शर्मिला चानू पिछले दस सालों से भूखहड़ताल पर हैं वे मणिपुर से विवादित आर्म्‍ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (एएफएसपीए) 1958 हटा जाने की मांग कर रही हैं चानू की भूख हड़ताल को आज 10 साल हो ग हैं। शर्मिला का यह संघर्ष मानव जीवन अधिकारों की मांग का संघर्ष है। शर्मिला तुम्‍हें सलाम।)

कांटों की चूडि़यों जैसी बेडि़यों से
मेरे पैरों को आजाद करो
एक संकरे कमरे में कैद
मेरा कुसूर है
परिंदे के रूप में अवतार लेना