Thursday, July 4, 2013

फिर मुलाकात हुई एक 'फैन' से..


अभी पिछले महीने ही उत्‍तरकाशी में अपनी कविताओं की फैन रेखा चमोली से मुलाकात हुई थी। अपने एक और फैन से मिलने का मौका इतनी जल्‍दी दुबारा आ जाएगा, मैंने सोचा नहीं था। मैं रुद्रपुर में अज़ीम प्रेमजी फाउण्‍डेशन ऑफिस के बड़े हाल में बैठा हुआ था। थोड़ी ही देर पहले एक बैठक समाप्‍त हुई थी। धीरे-धीरे वहां कुछ युवा और किशोर जमा होने शुरू हो रहे थे। पता चला कि वे सब अगले रविवार को मंचित किए जाने वाले नाटक दरिंदे की रिहर्सल के लिए आ रहे हैं। मैं वहां से जाने के लिए अपना सामान समेटने लगा।

अचानक ही एक किशोर मेरे पास आकर बैठ गया। उसने छूटते से ही कहा,  सर, मैंने आपको पहले भी देखा है । मैं उसे पहचानने की कोशिश कर ही रहा था कि वह बोला, ‘आपका नाम राजेश है। मैंने हामी भरी। मुझे कुछ भी और कहने का मौका दिए बिना वह बोला, मैंने यहां कि लायब्रेरी में आपकी किताब पढ़ी है। जिसमें आपने छोकरा एक, छोकरा दो, छोकरा तीन कविताएं लिखीं हैं। आपने उसमें अपनी पत्‍नी पर भी कविता लिखी है।

तीन-चार और कविताओं के शीर्षक उसने बता दिए। मैं हतप्रभ था और वह गदगद। वह मुझसे मिलकर खुशी से फूला नहीं समा रहा था। उसने लायब्रेरी में मेरा कविता संग्रह वह जो शेष है पढ़ा था। संग्रह के पिछले आवरण पर मेरा फोटो भी था। शक्‍ल तो उसने वहीं देखी होगी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह किसी लेखक से मिल रहा है। उसने अपने दो-तीन और साथियों को बुलाया और बताया कि मैं वह कवि हूं जिसकी किताब भी छपी। उसने कहा कि वह भी कविताएं लिखता है और मुझे पढ़वाना चाहता है। पर आज तो वह लाया नहीं है।

नाटक की रिहर्सल शुरू हो चुकी थी। मैं उसमें बाधा नहीं बनना चाहता था। मैंने उससे कहा कि मैं दो-तीन दिन यहां हूं। कल वह अपनी कविताएं लाए और मुझे दिखाए।

मैं अन्‍य साथियों के साथ हाल से बाहर निकल आया। वह भी मेरे साथ साथ ही बाहर तक आया। उसके दोस्‍त भी साथ थे। मैंने उनसे कहा, हम कल मिलेंगे । उसके दोस्‍त तो चले गए....पर वह जैसे मेरा साथ छोड़ना ही नहीं चाहता था। मैंने अपने साथी मुजाहिद से कहा कि हमारा एक फोटो ले ले। पांच मिनट बाद मोबाइल पर उसका संदेश आया कि फिर मिलेंगे।

अगले दिन उसके हाथ में मेरा संग्रह था। वह अपनी कविताएं भी लेकर आया था। बेटी, भ्रूण हत्‍या, कश्‍मीर, देश जैसे विषयों पर कविताएं उसने लिखीं हैं। मुझे उसकी कविताएं पढ़कर अपने किशोर दिन याद आ गए। शुरुआत तो मैंने भी ऐसे ही की थी। पर ज्‍यों ज्‍यों समझ बनती गई, धुंध छटती गई। मैंने उसे अपने अनुभव से कुछ बातें कहीं। एक बार फिर उसने मुझे चौंकाया। उसने कुछ और बातों का जिक्र किया जिससे मुझे पता चला कि केवल कविताएं ही नहीं, उसकी किताब की भूमिका भी पढ़ी थी, जिसमें ज्ञानरंजन जी और मेरे बीच हुए पत्रव्‍यवहार का जिक्र था।

अपनी कविताओं के इस किशोर पाठक से मिलना सचमुच एक अनोखा अनुभव रहा। यह पाठक दसवीं कक्षा में पढ़ने वाला विश्‍वास कुमार है।                                0 राजेश उत्‍साही

2 comments:

  1. रोचक मिलन, ईश्वर बड़े जतन से मिलाता है, लेखक को उसके पाठक से। आनन्द मनायें।

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  2. वाह इस बार तो दो फैन मिल गए आपको ...मुझे भी कुछ घटनाएं याद आ गईं..

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जनाब गुल्‍लक में कुछ शब्‍द डालते जाइए.. आपको और मिलेंगे...