Wednesday, November 27, 2013

माँ का पत्र बच्‍चों के नाम




पत्र लेखिका बेजी जैसन
मेरे प्यारे बच्चो,
बस कल ही गुड़िया मुझसे यह सवाल पूछ रही थी, " मम्मी यौन उत्पीड़न का मतलब क्या होता है?"  मैंने खुद को संयत करने की कोशिश की थी। मैं अपने चेहरे पर जोएल(बेटे) की आँकती हुई नजर को महसूस कर सकती थी। वह मेरे भीतर चलते द्वन्द्व को भाँप रहा था। मैं मन ही मन जूझ रही थी। क्या मुझे तुम्हें इन बातों के बारे में जानकारी देनी चाहिए, तुम्हारी मासूमियत को इस तरह झकझोरना क्या जरूरी है या तुम्हें अपने आँचल में खींचकर इस दुनिया की हर चोट से सुरक्षित होने का विश्वास करवाना चाहिए।

किन्‍तु मेरी बच्ची, तुम्हारी दुनिया यहीं शुरु होती है, घर में। और मैं तुम्हें हर बात से सुरक्षित रखने में शायद हमेशा सफल ना हो सकूँ। मैं तुम्हें पहले भी इस उम्र और इसमें होने वाले शारीरिक, मानसिक और आन्‍तरिक बदलाव के बारे में बता चुकी हूँ। तुम्हारी कौतुक भरी आँखों में तब भी कई सवाल थे किन्‍तु तब तुमने मुझसे कुछ भी पूछा नहीं था।

शायद जिस जोश और भावुकता के साथ मैं समाचार चैनल उलट पुलट रही थी, और जिस तरह लड़की, सेक्स, यौन उत्पीड़न, खून, साजिश,  (और विभिन्‍न लोगों के नाम).........बार बार दोहराए जा रहा थे, तुमसे रहा नहीं गया। और यह मुश्किल सवाल तुमने पूछ लिया। काश मेरे पास ऐसी कोई परिभाषा होती, कोई सही गलत की निश्चित नियमावली होती , जिसे मैं तुम्हें सौंपकर आश्वस्त हो जाती।

किन्‍तु मेरे पास ऐसे कोई दिशानिर्देश नहीं हैं। और इसीलिए जरूरी है कि हम आपसी संवाद से अपनी समझ बना सकें।

तुम एक व्यक्ति हो। स्वतंत्र। तुम्हारे शरीर और तुम्हारे मन पर तुम्हारा ही अधिकार है। किसी को भी तुम्हारी अनुमति के बिना इन दोनों की सीमा लाँघने का अधिकार नहीं है। कौन कब तुम्हारी अनुमति के बिना यह सीमा पार कर रहा है, यह समझना तुम्हारे लिये हमेशा आसान नहीं होगा। मेरी एक छोटी सी बात गाँठ बाँध लो, जो स्पर्श, जो बात तुम्हें असहज करती हो, तुम्हें तुरन्‍त उससे दूर हो जाना चाहिए। कोई भी व्यक्ति जो तुम्हारी कद्र करता है, वह तुम्हारे मन, शरीर और भावना को आहत नहीं करना चाहेगा। दूर होने के बाद तुम शान्‍त मन से इस बात का विश्लेषण कर सकती हो। सबसे पहले खुद को सुरक्षित कर लेना जरूरी है। हर ऐसी ....और कैसी भी छोटी-बड़ी बात तुम मुझसे साझा करो। तुम मुझसे हर तरह की बात कह सकती हो। ऐसी बात भी जिसे सही शब्दों और वाक्य में तुम बाँधना नहीं जानती।

तुम्हारा अपने शरीर के निजी हिस्सों के संरक्षण को लेकर सजग होना सही ही नहीं, जरूरी भी है। यह तुम्हारा अधिकार है। इतना ही नहीं बल्कि तुम्हें गंदे स्पर्श, पकड़ और कुत्सित अश्लील इशारों की समझ भी बनानी होगी। और खुद को इनसे बचाना भी होगा। ऐसे किसी भी सन्दर्भ में तुम चिल्ला सकती हो, भीड़ इकट्ठा कर सकती हो, दूर हो सकती हो, अपने बचाव में ऐसे लोगों को आहत कर सकती हो। बिना हिचकिचाये या डरे तुम लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच सकती हो। अक्सर इस प्रकार के लोग कायर होते हैं और तुम्हारा इतना करना उन्हें दूर करने के लिए पर्याप्त होगा।

फिर भी जीवन में कभी, ऐसा दुर्योग तुम्हारे या किसी और के साथ घट जाए तो याद रखना इससे लड़की कभी भी कम खूबसूरत या पापिन या अधूरी या बेबस और बेचारी नहीं बनती। वह आहत तो हो सकती है किन्‍तु यह ऐसी कोई बात नहीं है जिसके लिए मुँह छिपाकर चलना पड़े।

तुमने छठी इंद्रीय के बारे में सुना होगा। यह वाकई में होती है। अपनी अन्तर्दृष्टि से दुनिया देखना सीखो। अपनी शंका और आभास को पहचानो। अगर तुम सजग रहीं तो सुरक्षित रहोगी।

तुम उम्र के जिस पड़ाव पर हो, वहाँ जीवन में सब धुँधला दिखता है। जीवन के रंग गहरे और स्वप्न सुन्‍दर। तुम अपने निर्णय समझ से कम और भावुकता से ज्यादा लेती हो। तुम्हारे लिए यह बात जानना और इस तथ्य को पहचानना जरूरी है। ताकि तुम अपने सभी निर्णय समझ की कसौटी में तोल सको।

तुम्हें मालूम ही होगा एक स्त्री और पुरुष , एक लड़के और लड़की के बीच आकर्षण होना स्वाभाविक है। हम खुद को समाज के नियमों से जोड़ते हैं। चेतना और विवेक से काम लेते हैं। हम अपने जीवन के लक्ष्य की तरफ केन्द्रित होते हैं। एक- दूसरे को सम्मान देते हैं और समानता की दृष्टि से देखते हैं।

फिर भी हो सकता है कि इस बीच तुम किसी की ओर आकर्षित हो जाओ। अपनी नजरों और अदाओं से ध्यान खींचना चाहो। तुम्हारा आकर्षण तुम्हारी आँखों, शब्दों, इशारों और संकेतों में झलकने लगे।ऐसे  में सचेत रहना, क्योंकि सामने वाला भी तुम्हारी ओर आकर्षित हो सकता है। उसकी अभिव्यक्ति का तरीका शायद तुम्हें स्वीकार्य ना हो। अगर तुम ऐसे आकर्षण में उलझना नहीं चाहतीं तो तुम्हें खुद को संयत तरीके से व्यक्त करना सीखना होगा। याद रखो अगर तुम मर्यादा की सीमा पार करोगी तो तुम्हें मर्यादा की उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए। ऐसे में कुछ घट जाने के बाद छूने-छेड़ने के सबूत ढूँढना फिजूल ही नहीं, बल्कि नैतिकता के तौर पर गलत भी।

और तुम जोएल, तुम्हें स्‍त्रीत्व का सम्मान करना आना चाहिए। तुम्हें भी सहज और असहज स्पर्श का फर्क मालूम होना चाहिए। अपने साथियों, बहन, उसकी दोस्तों, छोटों और बड़ों से व्यवहार करना आना चाहिए। कभी भी अपनी भाषा या व्यवहार से किसी को ठेस मत पहुँचाना।

काश, मैं तुम्हें आश्वासन दे सकती कि अगर तुम सज्जनता के नियमों का पालन करोगे तो तुम्हारे साथ हरदम सब ठीक होगा। आज के युग में जहाँ नारी कँधा से कँधा मिलाने की कोशिश कर रही है वहाँ रोज ऐसे नए सन्‍दर्भ बन सकते हैं। तुम उन्हे अपने सहकर्मी, सहयोगी, बॉस....किसी भी रूप में पा सकते हो। ताकत, आकर्षण, जरूरत, मोह, लोभ, संयोग, सन्‍दर्भ...इनके मिले-जुले पारस्परिक प्रभाव में अनेक संभावनाए बन जाती हैं। तुम्हारा विनम्र और सुशील बने रहना जरूरी है। कभी भी किसी भी व्यक्ति के निजी स्पेस का उल्लंघन मत करना। न शब्द से, न व्यवहार से। ऐसा कोई भी उल्लंघन भुलाया नहीं जाता है, देर-सबेर उसे दोषी ठहराया जाता है और सजा भी मिलती है। बरसों बाद हमारा समाज स्त्री पर हो रहे अत्याचारों की तरफ़ सजग हुआ है। अधिकतर नियमों का झुकाव स्त्री की तरफ  है। ऐसे में अगर तुम किसी संदिग्ध सन्दर्भ में पाए जाओगे, तो अपना निर्दोष होना साबित करना तकरीबन नामुमकिन होगा। मैं तुम्हें ऐसे सन्दर्भ से दूर रहने की ही सलाह दूगी।

यह ध्यान में रहे , अगर कोई तुम्हारे पिता की तरह लगता है तो वह तुम्हारा पिता नहीं हो जाता। कोई लड़की को देख तुम्हें अपनी बहन सी प्रतीत होती हो, वह बहन नहीं बन जाती।

खुद को समझो। पहचानो। अजनबी के साथ उन्हें, जानने, पहचानने का पूर्वाग्रह मत पालो। खुद का और दूसरों का सम्मान करो।

मैं दुनिया की समझ जिस तरह दे रही हूँ, यह काफी बदरंग और भयावह जगह प्रतीत होती है। पर ऐसा भी नहीं है। आज भी प्यार करना और पाना दुनिया की , जीवन की सबसे खूबसूरत अनुभूति है। पर तुम्हें स्नेह, प्रेम, काम, आसक्ति में फर्क पहचानना होगा।
जिस रूहानी मोहब्बत की बात तुम पढ़ते-सुनते हो, वह भी इस जीवन में सम्भव है। आगे जाकर तुम्हें उसका भी अनुभव होगा। किन्‍तु तब तक देह की उत्तेजना को प्यार समझने की भूल मत करना।

सरल सन्‍दर्भ में जीना आसान होता है। जटिल सन्‍दर्भ में विवेक का होना आवश्यक है। ऐसे में तुम्हें अपनी आवाज दबने नहीं देनी है। निडर और निर्भय होकर अपनी बात कहना। सही करने में, कहने में हिचकना मत।

सत्यनिष्ठा रखना। सत्य कहने और स्वीकार करने में संकोच मत करना। खुद के प्रति ईमानदार रहना।

मैं दुआ माँगती हूँ कि ऐसा भी हो जब तुम सही होने से ज्यादा उदार होने का चयन करो।

सजग रहना, समय को भांपने और सही निर्णय लेने में देर नहीं करना, न्याय करने और सजा देने में जल्दबाजी नहीं करना, और खुद से सवाल पूछते रहना। खुद के ग़लत होने पर वह भी स्वीकार करना।

गौरव और गर्व के साथ, हमेशा खुद से ईमानदार रहना।

सस्नेह

मम्मी

(बेजी जैसन की फेसबुक वॉल से उनकी अनुमति से साभार प्रकाशित। लेखिका सूरत,गुजरात में रहती हैं और पेशे से बाल रोग विशेषज्ञ हैं।)

2 comments:

  1. बहुत ही अच्छा पत्र , सभी माँ को अपने बच्चो से इतना ही खुल कर बात करना चाहिए , चाहे बेटा हो या बेटी ।

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